।।1.17।।

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।।1.17।।

kāśhyaśhcha parameṣhvāsaḥ śhikhaṇḍī cha mahā-rathaḥ dhṛiṣhṭadyumno virāṭaśhcha sātyakiśh chāparājitaḥ

kāśhyaḥ—King of Kashi; cha—and; parama-iṣhu-āsaḥ—the excellent archer; śhikhaṇḍī—Shikhandi; cha—also; mahā-rathaḥ—warriors who could single handedly match the strength of ten thousand ordinary warriors; dhṛiṣhṭadyumnaḥ—Dhrishtadyumna; virāṭaḥ—Virat; cha—and; sātyakiḥ—Satyaki; cha—and; aparājitaḥ—invincible;

अनुवाद

।।1.17 -- 1.18।। हे राजन्! श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी तथा धृष्टद्युम्न एवं राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद और द्रौपदी के पाँचों पुत्र तथा लम्बी-लम्बी भुजाओंवाले सुभद्रा-पुत्र अभिमन्यु - इन सभी ने सब ओर से अलग-अलग (अपने-अपने) शंख बजाये।  

टीका

।।1.17।। व्याख्या--'काश्यश्च परमेष्वासः ৷৷. शङ्खान् दध्मुः पृथक्पृथक्'--महारथी शिखण्डी बहुत शूरवीर था। यह पहले जन्ममें स्त्री (काशिराजकी कन्या अम्बा) था और इस जन्ममें भी राजा द्रुपदको पुत्रीरूपसे प्राप्त हुआ था। आगे चलकर यही शिखण्डी स्थूणाकर्ण नामक यक्षसे पुरुषत्व प्राप्त करके पुरुष बना। भीष्मजी इन सब बातोंको जानते थे और शिखण्डीको स्त्री ही समझते थे। इस कारण वे इसपर बाण नहीं चलाते थे। अर्जुनने युद्धके

समय इसीको आगे करके भीष्मजीपर बाण चलाये और उनको रथसे नीचे गिरा दिया। अर्जुनका पुत्र अभिमन्यु बहुत शूरवीर था। युद्धके समय इसने द्रोणनिर्मित चक्रव्यूहमें घुसकर अपने पराक्रमसे बहुतसे वीरोंका संहार किया। अन्तमें कौरवसेनाके छः महारथियोंने इसको अन्यायपूर्वक घेरकर इसपर शस्त्रअस्त्र चलाये। दुःशासनपुत्रके द्वारा सिरपर गदाका प्रहार होनेसे इसकी मृत्यु हो गयी। सञ्जयने शंखवादनके वर्णनमें कौरवसेनाके शूरवीरोंमेंसे

केवल भीष्मजीका ही नाम लिया और पाण्डवसेनाके शूरवीरोंमेंसे भगवान् श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीम आदि अठारह वीरोंके नाम लिये। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सञ्जयके मनमें अधर्मके पक्ष-(कौरवसेना-) का आदर नहीं है। इसलिये वे अधर्मके पक्षका अधिक वर्णन करना उचित नहीं समझते। परन्तु उनके मनमें धर्मके पक्ष-(पाण्डवसेना-) का आदर होनेसे और भगवान् श्रीकृष्ण तथा पाण्डवोंके प्रति आदरभाव होनेसे वे उनके पक्षका ही अधिक वर्णन करना उचित समझते हैं और उनके पक्षका वर्णन करनेमें ही उनको आनन्द आ रहा है।