।।11.1।।
अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसंज्ञितम्। यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम।।11.1।।
arjuna uvācha mad-anugrahāya paramaṁ guhyam adhyātma-sanjñitam yat tvayoktaṁ vachas tena moho ’yaṁ vigato mama
arjunaḥ uvācha—Arjun said; mat-anugrahāya—out of compassion to me; paramam—supreme; guhyam—confidential; adhyātma-sanjñitam—about spiritual knowledge; yat—which; tvayā—by you; uktam—spoken; vachaḥ—words; tena—by that; mohaḥ—illusion; ayam—this; vigataḥ—is dispelled; mama—my
अनुवाद
।।11.1।। अर्जुन बोले -- केवल मेरेपर कृपा करनेके लिये ही आपने जो परम गोपनीय अध्यात्मतत्तव जाननेका वचन कहा, उससे मेरा यह मोह नष्ट हो गया है।
टीका
।।11.1।। व्याख्या--'मदनुग्रहाय'--मेरा भजन करनेवालोंपर कृपा करके मैं स्वयं उनके अज्ञानजन्य अन्धकारका नाश कर देता हूँ (गीता 10। 11) -- यह बात भगवान्ने केवल कृपा-परवश होकर कही। इस बातका अर्जुनपर बड़ा प्रभाव प़ड़ा, जिससे अर्जुन भगवान्की स्तुति करने लगे (10। 12 -- 15)। ऐसी स्तुति उन्होंने पहले गीतामें कहीं नहीं की। उसीका लक्ष्य करके अर्जुन यहाँ कहते हैं कि केवल मेरेपर कृपा करनेके लिये ही आपने ऐसी बात कही है (टिप्पणी प0 573.2)।