Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्। नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।

aneka-bāhūdara-vaktra-netraṁ paśhyāmi tvāṁ sarvato ’nanta-rūpam nāntaṁ na madhyaṁ na punas tavādiṁ paśhyāmi viśhveśhvara viśhva-rūpa

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Word Meanings

anekainfinite
bāhuarms
udarastomachs
vaktrafaces
netrameyes
paśhyāmiI see
tvāmyou
sarvataḥin every direction
ananta-rūpaminifinite forms
na antamwithout end
nanot
madhyammiddle
nano
punaḥagain
tavayour
ādimbeginning
paśhyāmiI see
viśhwa-īśhwaraThe Lord of the universe
viśhwa-rūpauniversal form
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अनुवाद

।।11.16।। हे विश्वरूप ! हे विश्वेश्वरव ! आपको मैं अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रोंवाला तथा सब ओरसे अनन्त रूपोंवाला देख रहा हूँ। मैं आपके न आदिको, न मध्यको और न अन्तको ही देख रहा हूँ।

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टीका

।।11.16।। व्याख्या--'विश्वरूप',विश्वेश्वर'--इन दो सम्बोधनोंका तात्पर्य है कि मेरेको जो कुछ भी दीख रहा है, वह सब आप ही हैं और इस विश्वके मालिक भी आप ही हैं। सांसारिक मनुष्योंके शरीर तो जड होते हैं और उनमें शरीरी चेतन होता है; परन्तु आपके विराट्रूपमें शरीर और शरीरी-- ये दो विभाग नहीं हैं। विराट्रूपमें शरीर और शरीरीरूपसे एक आप ही हैं। इसलिये विराट्रूपमें सब कुछ चिन्मय-ही-चिन्मय है। तात्पर्य यह हुआ कि अर्जुन विश्वरूप सम्बोधन देकर यह कह रहे हैं कि आप ही शरीर हैं और 'विश्वेश्वर' सम्बोधन देकर यह कह रहे हैं कि आप ही शरीरी (शरीरके मालिक) हैं।

भगवद गीता 11.16 - अध्याय 11 श्लोक 16 हिंदी और अंग्रेजी