Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

श्री भगवानुवाच पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः। नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।

śhrī-bhagavān uvācha paśhya me pārtha rūpāṇi śhataśho ’tha sahasraśhaḥ nānā-vidhāni divyāni nānā-varṇākṛitīni cha

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Word Meanings

śhrī-bhagavān uvāchathe Supreme Lord said
paśhyabehold
memy
pārthaArjun, the son of Pritha
rūpāṇiforms
śhataśhaḥby the hundreds
athaand
sahasraśhaḥthousands
nānā-vidhānivarious
divyānidivine
nānāvarious
varṇacolors
ākṛitīnishapes
chaand
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अनुवाद

।।11.5।। श्रीभगवान् बोले -- हे पृथानन्दन ! अब मेरे अनेक तरहके, अनेक अनेक वर्णों और आकृतियोंवाले सैकड़ों-हजारों दिव्यरूपोंको तू देख।

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टीका

।।11.5।। व्याख्या--'पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः'--अर्जुनकी संकोचपूर्वक प्रार्थनाको सुनकर भगवान् अत्यधिक प्रसन्न हुए; अतः अर्जुनके लिये 'पार्थ' सम्बोधनका प्रयोग करते हुए कहते हैं कि तू मेरे रूपोंको देख। रूपोंमें भी तीन-चार नहीं, प्रत्युत सैकड़ों-हजारों रूपोंको देख अर्थात् अनगिनत रूपोंको देख। भगवान्ने जैसे विभूतियोंके विषय कहा है कि मेरी विभूतियोंका अन्त नहीं आ सकता, ऐसे ही यहाँ भगवान्ने,अपने रूपोंकी अनन्तता बतायी है।

भगवद गीता 11.5 - अध्याय 11 श्लोक 5 हिंदी और अंग्रेजी