अर्जुन उवाचएवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते।येचाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः।।12.1।।
arjuna uvācha evaṁ satata-yuktā ye bhaktās tvāṁ paryupāsate ye chāpy akṣharam avyaktaṁ teṣhāṁ ke yoga-vittamāḥ
0:00 / --:--
Word Meanings
arjunaḥ uvācha—Arjun said
evam—thus
satata—steadfastly
yuktāḥ—devoted
ye—those
bhaktāḥ—devotees
tvām—you
paryupāsate—worship
ye—those
cha—and
api—also
akṣharam—the imperishable
avyaktam—the formless Brahman
teṣhām—of them
ke—who
yoga-vit-tamāḥ—more perfect in Yog
•••
अनुवाद
।।12.1।।जो भक्त इस प्रकार निरन्तर आपमें लगे रहकर आप-(सगुण भगवान्-) की उपासना करते हैं और जो अविनाशी निराकारकी ही उपासना करते हैं, उनमेंसे उत्तम योगवेत्ता कौन हैं?
•••
टीका
।।12.1।। व्याख्या--'एवं सततयुक्ता ये भक्ताः'--ग्यारहवें अध्यायके पचपनवें श्लोकमें भगवान्ने 'यः' और 'सः' पद जिस साधकके लिये प्रयुक्त किये हैं, उसी साधकके लिये अर्थात् सगुण-साकार भगवान्की उपासना करनेवाले सब साधकोंके लिये यहाँ 'ये भक्ताः' पद आये हैं।