Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः।सर्वकर्मफलत्यागं ततः कुरु यतात्मवान्।।12.11।।

athaitad apy aśhakto ’si kartuṁ mad-yogam āśhritaḥ sarva-karma-phala-tyāgaṁ tataḥ kuru yatātmavān

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Word Meanings

athaif
etatthis
apieven
aśhaktaḥunable
asiyou are
kartumto work
mad-yogamwith devotion to me
āśhritaḥtaking refuge
sarva-karmaof all actions
phala-tyāgamto renounce the fruits
tataḥthen
kurudo
yata-ātma-vānbe situated in the self
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अनुवाद

।।12.11।।अगर मेरे योग-(समता-) के आश्रित हुआ तू इस(पूर्वश्लोकमें कहे गये साधन-) को भी करनेमें असमर्थ है, तो मन-इन्द्रियोंको वशमें करके सम्पूर्ण कर्मोंके फलका त्याग कर।

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टीका

।।12.11।। व्याख्या--'अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः'--पूर्वश्लोकमें भगवान्ने अपने लिये ही सम्पूर्ण कर्म करनेसे अपनी प्राप्ति बतायी और अब इस श्लोकमें वे सम्पूर्ण कर्मोंके फलत्यागरूप साधनकी बात बता रहे हैं। वहाँ भगवान्के लिये समस्त कर्म करनेमें भक्तिकी प्रधानता होनेसे उसे 'भक्तियोग' कहेंगे और यहाँ सर्वकर्मफलत्यागमें केवल फलत्यागकी मुख्यता होनेसे इसे 'कर्मयोग' कहेंगे। इस प्रकार भगवत्प्राप्तिके ये दोनों ही स्वतन्त्र (पृथक्-पृथक्) साधन हैं।

भगवद गीता 12.11 - अध्याय 12 श्लोक 11 हिंदी और अंग्रेजी