।।12.7।।

तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।।

teṣhām ahaṁ samuddhartā mṛityu-saṁsāra-sāgarāt bhavāmi na chirāt pārtha mayy āveśhita-chetasām

teṣhām—of those; aham—I; samuddhartā—the deliverer; mṛityu-saṁsāra-sāgarāt—from the ocean of birth and death; bhavāmi—(I) become; na—not; chirāt—after a long time; pārtha—Arjun, the son of Pritha; mayi—with me; āveśhita chetasām—of those whose consciousness is united

अनुवाद

।।12.7।।हे पार्थ ! मेरेमें आविष्ट चित्तवाले उन भक्तोंका मैं मृत्युरूप संसार-समुद्रसे शीघ्र ही उद्धार करनेवाला बन जाता हूँ।

टीका

।।12.7।। व्याख्या--'तेषामहं समुद्धर्ता ৷৷. मय्यावेशितचेतसाम्'--जिन साधकोंका लक्ष्य, उद्देश्य, ध्येय,भगवान् ही बन गये हैं और जिन्होंने भगवान्में ही अनन्य प्रेमपूर्वक अपने चित्तको लगा दिया है तथा जो स्वयं भी भगवान्में ही लग गये हैं, उन्हींके लिये यहाँ 'मय्यावेशितचेतसाम्' पद आया है।