Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।

ahaṁ vaiśhvānaro bhūtvā prāṇināṁ deham āśhritaḥ prāṇāpāna-samāyuktaḥ pachāmy annaṁ chatur-vidham

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Word Meanings

ahamI
vaiśhvānaraḥfire of digestion
bhūtvābecoming
prāṇināmof all living beings
dehamthe body
āśhritaḥsituated
prāṇa-apānaoutgoing and incoming breath
samāyuktaḥkeeping in balance
pachāmiI digest
annamfoods
chatuḥ-vidhamthe four kinds
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अनुवाद

।।15.14।।प्राणियोंके शरीरमें रहनेवाला मैं प्राण-अपानसे युक्त वैश्वानर होकर चार प्रकारके अन्नको पचाता हूँ।

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टीका

।।15.14।। व्याख्या --   अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः -- बारहवें श्लोकमें अग्निकी प्रकाशनशक्तिमें अपने प्रभावका वर्णन करनेके बाद भगवान् इस श्लोकमें वैश्वानररूप अग्निकी पाचनशक्तिमें अपने प्रभावका वर्णन करते हैं (टिप्पणी प0 775.1)। तात्पर्य यह है कि अग्निके दोनों ही कार्य (प्रकाश करना और पचाना) भगवान्की ही शक्तिसे होते हैं।प्राणियोंके शरीरको पुष्ट करने तथा उनके प्राणोंकी रक्षा करनेके लिये

भगवान् ही वैश्वानर(जठराग्नि) के रूपसे उन प्राणियोंके शरीरमें रहते हैं। मनुष्योंकी तरह लता? वृक्ष आदि स्थावर और पशु? पक्षी आदि जङ्गम प्राणियोंमें भी वैश्वानरकी पाचनशक्ति काम करती है। लता? वृक्ष आदि जो खाद्य? जल ग्रहण करते हैं? पाचनशक्तिके द्वारा उसका पाचन होनेके फलस्वरूप ही उन लतावृक्षादिकी वृद्धि होती है।प्राणापानसमायुक्तः -- शरीरमें प्राण? अपान? समान? उदान और व्यान -- ये पाँच प्रधान वायु एवं नाग?

कूर्म? कृकर? देवदत्त और धनञ्जय -- ये पाँच उपप्रधान वायु रहती हैं (टिप्पणी प0 775.2)। इस श्लोकमें भगवान् दो प्रधान वायु -- प्राण और अपानका ही वर्णन करते हैं क्योंकि ये दोनों वायु जठराग्निको प्रदीप्त करती हैं। जठराग्निसे पचे हुए भोजनके सूक्ष्म अंश या रसको शरीरके प्रत्येक अङ्गमें पहुँचानेका सूक्ष्म कार्य भी मुख्यतः प्राण और अपान वायुका ही है।पचाम्यन्नं चतुर्विधम् -- प्राणी चार प्रकारके अन्नका भोजन करते

हैं --,(1) भोज्य -- जो अन्न दाँतोंसे चबाकर खाया जाता है जैसे -- रोटी? पुआ आदि।(2) पेय -- जो अन्न निगला जाता है जैसे खिचडी? हलवा? दूध? रस आदि।(3) चोष्य -- दाँतोंसे दबाकर जिस खाद्य पदार्थका रस चूसा जाता है और बचे हुए असार भागको थूक,दिया जाता है जैसे -- ऊख? आम आदि। वृक्षादि स्थावर योनियाँ इसी प्रकारसे अन्नको ग्रहण करती हैं।(4) लेह्य -- जो अन्न जिह्वासे चाटा जाता है जैसे -- चटनी? शहद आदि।अन्नके उपर्युक्त

चार प्रकारोंमें भी एकएकके अनेक भेद हैं। भगवान् कहते हैं कि उन चारों प्रकारके अन्नोंको वैश्वानर(जठराग्नि) रूपसे मैं ही पचाता हूँ। अन्नका ऐसा कोई अंश नहीं है? जो मेरी शक्तिके बिना पच सके। सम्बन्ध --   पीछेके तीन श्लोकोंमें अपनी प्रभावयुक्त विभूतियोंका वर्णन करके अब उस विषयका उपसंहार करते हुए भगवान् सब प्रकारसे जाननेयोग्य तत्त्व स्वयंको बताते हैं।

भगवद गीता 15.14 - अध्याय 15 श्लोक 14 हिंदी और अंग्रेजी