Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

श्री भगवानुवाचत्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु।।17.2।।

śhrī-bhagavān uvācha tri-vidhā bhavati śhraddhā dehināṁ sā svabhāva-jā sāttvikī rājasī chaiva tāmasī cheti tāṁ śhṛiṇu

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Word Meanings

śhrī-bhagavān uvāchathe Supreme Personality said
tri-vidhāof three kinds
bhavatiis
śhraddhāfaith
dehināmembodied beings
which
sva-bhāva-jāborn of one’s innate nature
sāttvikīof the mode of goodness
rājasīof the mode of passion
chaand
evacertainly
tāmasīof the mode of ignorance
chaand
itithus
tāmabout this
śhṛiṇuhear
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अनुवाद

।।17.2।।श्रीभगवान् बोले -- मनुष्योंकी वह स्वभावसे उत्पन्न हुई श्रद्धा सात्त्विकी तथा राजसी और तामसी -- ऐसे तीन तरहकी ही होती है, उसको तुम मेरेसे सुनो।

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टीका

।।17.2।। व्याख्या --   [अर्जुनने निष्ठाको जाननेके लिये प्रश्न किया था? पर भगवान् उसका उत्तर श्रद्धाको लेकर देते हैं क्योंकि श्रद्धाके अनुसार ही निष्ठा होती है।]त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा -- श्रद्धा तीन तरहकी होती है। वह श्रद्धा कौनसी है सङ्गजा है? शास्त्रजा है या स्वभावजा है तो कहते हैं कि वह स्वभावजा है -- सा स्वभावजा अर्थात् स्वभावसे पैदा हुई स्वतःसिद्ध श्रद्धा है। वह न तो सङ्गसे

पैदा हुई है और न शास्त्रोंसे पैदा हुई है। वे स्वाभाविक इस प्रवाहमें बह रहे हैं और देवता आदिका पूजन करते जा रहे हैं।सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु -- वह स्वभावजा श्रद्धा तीन प्रकारकी होती है -- सात्त्विकी? राजसी और तामसी। उन तीनोंको अलगअलग सुनो।पीछेके श्लोकमें सत्त्वमाहो रजस्तमः पदोंमें आहो अव्यय देनेका तात्पर्य यह था कि अर्जुनकी दृष्टिमें सत्त्वम् से दैवीसम्पत्ति और रजस्तमः से आसुरीसम्पत्ति

-- ये दो ही विभाग हैं और भगवान् भी बन्धनकी दृष्टिसे राजसीतामसी दोनोंको आसुरीसम्पत्ति ही मानते हैं -- निबन्धायासुरीमता (16। 5)। परंतु बन्धनकी दृष्टिसे राजसी और तामसी एक होते हुए भी दोनोंके बन्धनमें भेद है। राजस मनुष्य सकामभावसे शास्त्रविहित कर्म भी करते हैं अतः वे स्वर्गादि ऊँचे लोकोंमें जाकर और वहाँके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर फिर मृत्युलोकमें लौट आते हैं -- क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति

(गीता 9। 21)। परन्तु तामस मनुष्य शास्त्रविहित कर्म नहीं करते अतः वे कामना और मूढ़ताके कारण अधम गतिमें जाते हैं -- अधो गच्छन्ति तामसाः (गीता 14। 18)। इस प्रकार राजस और तामस -- दोनों ही मनुष्योंका बन्धन बना रहता है। दोनोंके बन्धनमें भेदकी दृष्टिसे ही भगवान् आसुरीसम्पदावालोंकी श्रद्धाके राजसी और तामसी -- दो भेद करते हैं और सात्त्विकी? राजसी और तामसी -- तीनों श्रद्धाओंको अलगअलग सुननेके लिये कहते हैं। सम्बन्ध --   पूर्वश्लोकमें वर्णित स्वभावजा श्रद्धाके तीन भेद क्यों होते हैं -- इसे भगवान् आगेके श्लोकमें बताते हैं।

भगवद गीता 17.2 - अध्याय 17 श्लोक 2 हिंदी और अंग्रेजी