।।17.26।।

सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते।प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते।।17.26।।

sad-bhāve sādhu-bhāve cha sad ity etat prayujyate praśhaste karmaṇi tathā sach-chhabdaḥ pārtha yujyate

sat-bhāve—with the intention of eternal existence and goodness; sādhu-bhāve—with auspicious intention; cha—also; sat—the syllable Sat; iti—thus; etat—this; prayujyate—is used; praśhaste—auspicious; karmaṇi—action; tathā—also; sat-śhabdaḥ—the word “Sat”; pārtha—Arjun, the son of Pritha; yujyate—is used;

अनुवाद

।।17.26।।हे पार्थ ! परमात्माके 'सत्'--इस  नामका सत्तामात्रमें और श्रेष्ठ भावमें प्रयोग किया जाता है तथा प्रशंसनीय कर्मके साथ 'सत्' शब्द जोड़ा जाता है।

टीका

।।17.26।। व्याख्या --   सद्भावे -- परमत्मा हैं इस प्रकार परमात्माकी सत्ता(होनेपन) का नाम सद्भाव है। उस परमात्माके सगुणनिर्गुण? साकारनिराकार आदि जितने रूप हैं और सगुणसाकारमें भी उसके विष्णु? राम? कृष्ण? शिव? शक्ति? गणेश? सूर्य आदि जितने अवतार हैं? वे सबकेसब सद्भाव के अन्तर्गत हैं। इस प्रकार जिसका किसी देश? काल? वस्तु आदिमें कभी अभाव नहीं होता? ऐसे परमात्माके जो अनेक रूप हैं? अनेक नाम हैं? अनेक तरहकी

लीलाएँ हैं? वे सबकेसब सद्भाव के अन्तर्गत हैं।साधुभावे -- परमात्मप्राप्तिके लिये अलगअलग सम्प्रदायोंमें अलगअलग जितने साधन बताये गये हैं? उनमें हृदयके जो दया? क्षमा आदि श्रेष्ठ? उत्तम भाव हैं? वे सबकेसब साधुभाव के अन्तर्गत हैं।सदित्येतत्प्रयुज्यते -- सत्तामें और श्रेष्ठतामें सत् शब्दका प्रयोग किया जाता है अर्थात् जो सदा है? जिसमें,कभी किञ्चिन्मात्र भी कमी और अभाव नहीं होता -- ऐसे परमात्माके लिये और

उस परमात्माकी प्राप्तिके लिये दैवीसम्पत्तिके जो सत्य? क्षमा? उदारता? त्याग आदि श्रेष्ठ गुण हैं? उनके लिये सत् शब्दका प्रयोग किया जाता है जैसे -- सत्तत्त्व? सद्गुण? सद्भाव आदि।प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते -- परमात्मप्राप्तिके लिये अलगअलग सम्प्रदायोंमें अलगअलग जितने साधन बताये गये हैं? उनमें क्रियारूपसे जितने श्रेष्ठ आचरण हैं? वे सबकेसब प्रशस्ते कर्मणि के अन्तर्गत हैं। इसी प्रकार शास्त्रविधिके

अनुसार यज्ञोपवीत? विवाह आदि संस्कार अन्नदान? भूमिदान? गोदान आदि दान और कुआँबावड़ी खुदवाना? धर्मशाला बनवाना? मन्दिर बनवाना? बगीचा लगवाना आदि श्रेष्ठ कर्म भी प्रशस्ते कर्मणि के अन्तर्गत आते हैं। इन सब श्रेष्ठ आचरणोंमें? श्रेष्ठ कर्मोंमें सत् शब्दका प्रयोग किया जाता है जैसे -- सदाचार? सत्कर्म? सत्सेवा? सद्व्यवहार आदि।