।।18.32।।
अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसाऽऽवृता।सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी।।18.32।।
adharmaṁ dharmam iti yā manyate tamasāvṛitā sarvārthān viparītānśh cha buddhiḥ sā pārtha tāmasī
adharmam—irreligion; dharmam—religion; iti—thus; yā—which; manyate—imagines; tamasa-āvṛitā—shrouded in darkness; sarva-arthān—all things; viparītān—opposite; cha—and; buddhiḥ—intellect; sā—that; pārtha—Arjun, the son of Pritha; tāmasī—of the nature of ignorance
अनुवाद
।।18.32।।हे पृथानन्दन ! तमोगुणसे घिरी हुई जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सम्पूर्ण चीजोंको उलटा मान लेती है, वह तामसी है।
टीका
।।18.32।। व्याख्या -- अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता -- ईश्वरकी निन्दा करना शास्त्र? वर्ण? आश्रम और लोकमर्यादाके विपरीत काम करना मातापिताके साथ अच्छा बर्ताव न करना सन्तमहात्मा? गुरुआचार्य आदिका अपमान करना झूठ? कपट? बेईमानी? जालसाजी? अभक्ष्य भोजन? परस्त्रीगमन आदि शास्त्रनिषिद्ध पापकर्मोंको धर्म मानना -- यह सब अधर्मको धर्म मानना है।अपने शास्त्र? वर्ण? आश्रमकी मर्यादामें चलना मातापिताकी आज्ञाका
पालन करना तथा उनकी तनमनधनसे सेवा करना संतमहात्माओंके उपदेशोंके अनुसार अपना जीवन बनाना धार्मिक ग्रन्थोंका पठनपाठन करना दूसरोंकी सेवाउपकार करना शुद्धपवित्र भोजन करना आदि शास्त्रविहित कर्मोंको उचित न मानना -- यह धर्मको अधर्म मानना है।तामसी बुद्धिवाले मनुष्योंके विचार होते हैं कि शास्त्रकारोंने? ब्राह्मणोंने अपनेको बड़ा बता दिया और,तरहतरहके नियम बनाकर लोगोंको बाँध दिया? जिससे भारत परतन्त्र हो गया जबतक
ये शास्त्र रहेंगे? ये धार्मिक पुस्तकें रहेंगी? तबतक भारतका उत्थान नहीं होगा? भारत परतन्त्रताकी बेड़ीमें ही जकड़ा हुआ रहेगा? आदिआदि। इसलिये वे मर्यादाओंको तोड़नेमें ही धर्म मानते हैं।सर्वार्थान्विपरीतांश्च -- आत्माको स्वरूप न मानकर शरीरको ही स्वरूप मानना ईश्वरको न मान करके दृश्य जगत्को ही सच्चा मानना दूसरोंको तुच्छ समझकर अपनेको ही सबसे बड़ा मानना दूसरोंको मूर्ख समझकर अपनेको ही पढ़ालिखा? विद्वान् समझना
जितने संतमहात्मा हो गये हैं? उनकी मान्यताओंसे अपनी मान्यताको श्रेष्ठ मानना सच्चे सुखकी तरफ ध्यान न देकर वर्तमानमें मिलनेवाले संयोगजन्य सुखको ही सच्चा मानना न करनेयोग्य कार्यको ही अपना कर्तव्य समझना अपवित्र वस्तुओंको ही पवित्र मानना -- यह सम्पूर्ण चीजोंको उलटा मानना है।बुद्धिः सा पार्थ तामसी -- तमोगुणसे आवृत जो बुद्धि अधर्मको धर्म? धर्मको अधर्म और अच्छेको बुरा? सुलटेको उलटा मानती है? वह बुद्धि तामसी
है। यह तामसी बुद्धि ही मनुष्यको अधोगतिमें ले जानेवाली है -- अधो गच्छन्ति तामसाः (गीता 14। 18)। इसलिये अपना उद्धार चाहनेवालेको इसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये। सम्बन्ध -- अब भगवान् सात्त्विकी धृतिके लक्षण बताते हैं।