।।18.42।।

शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्।।18.42।।

śhamo damas tapaḥ śhauchaṁ kṣhāntir ārjavam eva cha jñānaṁ vijñānam āstikyaṁ brahma-karma svabhāva-jam

śhamaḥ—tranquility; damaḥ—restraint; tapaḥ—austerity; śhaucham—purity; kṣhāntiḥ—patience; ārjavam—integrity; eva—certainly; cha—and; jñānam—knowledge; vijñānam—wisdom; āstikyam—belief in a hereafter; brahma—of the priestly class; karma—work; svabhāva-jam—born of one’s intrinsic qualities

अनुवाद

।।18.42।।मनका निग्रह करना इन्द्रियोंको वशमें करना; धर्मपालनके लिये कष्ट सहना; बाहर-भीतरसे शुद्ध रहना; दूसरोंके अपराधको क्षमा करना; शरीर, मन आदिमें सरलता रखना; वेद, शास्त्र आदिका ज्ञान होना; यज्ञविधिको अनुभवमें लाना; और परमात्मा, वेद आदिमें आस्तिक भाव रखना -- ये सब-के-सब ब्राह्मणके स्वाभाविक कर्म हैं।

टीका

।।18.42।। व्याख्या --   शमः -- मनको जहाँ लगाना चाहें? वहाँ लग जाय और जहाँसे हटाना चाहें? वहाँसे हट जाय -- इस प्रकार मनके निग्रहको शम कहते हैं।दमः -- जिस इन्द्रियसे जब जो काम करना चाहें? तब वह काम कर लें और जिस इन्द्रियको जब जहाँसे हटाना चाहें? तब वहाँसे हटा लें -- इसी प्रकार इन्द्रियोंको वशमें करना दम है।तपः -- गीतामें शरीर? वाणी और मनके तपका वर्णन आता है (17। 14 -- 16)? उस तपको लेते हुए भी यहाँ

वास्तवमें तप का अर्थ है -- अपने धर्मका पालन करते हुए जो कष्ट हो अथवा कष्ट आ जाय? उसको प्रसन्नतापूर्वक सहना अर्थात् कष्टके आनेपर चित्तमें प्रसन्नताका होना।शौचम् -- अपने मन? बुद्धि? इन्द्रियाँ? शरीर आदिको पवित्र रखना तथा अपने खानपान? व्यवहार आदिकी पवित्रता रखना -- इस प्रकार शौचाचारसदाचारका ठीक पालन करनेका नाम शौच है।क्षान्तिः -- कोई कितना ही अपमान करे? निन्दा करे? दुःख दे और अपनेमें उसको दण्ड देनेकी

योग्यता? बल? अधिकार भी हो? फिर भी उसको दण्ड न देकर उसके क्षमा माँगे बिना ही उसको प्रसन्नतापूर्वक क्षमा कर देनेका नाम क्षान्ति है।आर्जवम् -- शरीर? वाणी आदिके व्यवहारमें सरलता हो और मनमें छल? कपट? छिपाव आदि दुर्भाव न हों अर्थात् सीधासादापन हो? उसका नाम आर्जव है।ज्ञानम् -- वेद? शास्त्र? पुराण? इतिहास आदिका अच्छी तरह अध्ययन होना और उनके भावोंका ठीक तरहसे बोध होना तथा कर्तव्यअकर्तव्यका बोध होना ज्ञान

है। विज्ञानम् -- यज्ञमें स्रुक्? स्रुवा आदि वस्तुओंका किस अवसरपर किस विधिसे प्रयोग करना चाहिये -- इसका अर्थात् यज्ञविधिका तथा अनुष्ठान आदिकी विधिका अनुभव कर लेने (अच्छी तरह करके देख लेने) का नाम विज्ञान है।आस्तिक्यम् -- परमात्मा? वेदादि शास्त्र? परलोक आदिका हृदयमें आदर हो? श्रद्धा हो और उनकी सत्यतामें कभी सन्देह न हो तथा उनके अनुसार अपना आचरण हो? इसका नाम आस्तिक्य है।ब्रह्मकर्म स्वभावजम् -- ये

शम? दम आदि ब्राह्मणके स्वाभाविक कर्म (गुण) हैं अर्थात् इन कर्मों(गुणों)को धारण करनेमें ब्राह्मणको परिश्रम नहीं पड़ता।जिन ब्राह्मणोंमें सत्त्वगुणकी प्रधानता है? जिनकी वंशपरम्परा परम शुद्ध है और जिनके पूर्वजन्मकृत कर्म भी शुद्ध हैं? ऐसे ब्राह्मणोंके लिये ही शम? दम आदि गुण स्वाभाविक होते हैं और उनमें किसी गुणके न होनेपर अथवा किसी गुणमें कमी होनेपर भी उसकी पूर्ति करना उन ब्राह्मणोंके लिये सहज होता है।चारों

वर्णोंकी रचना गुणोंके तारतम्यसे की गयी है? इसलिये गुणोंके अनुसार उसउस वर्णमें वेवे कर्म स्वाभाविक प्रकट हो जाते हैं और दूसरे कर्म गौण हो जाते हैं। जैसे ब्राह्मणमें सत्त्वगुणकी प्रधानता होनेसे उसमें शम? दम आदि कर्म (गुण) स्वाभाविक आते हैं तथा जीविकाके कर्म गौण हो जाते हैं और दूसरे वर्णोंमें रजोगुण तथा तमोगुणकी प्रधानता होनेसे उन वर्णोंके जीविकाके कर्म भी स्वाभाविक कर्मोंमें सम्मिलित हो जाते हैं। इसी

दृष्टिसे गीतामें ब्राह्मणके स्वभावज कर्मोंमें जीविकाके कर्म न कह करके शम? दम आदि कर्म (गुण) ही कहे गये हैं। सम्बन्ध --   अब क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म बताते हैं।