Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।3.15।।

karma brahmodbhavaṁ viddhi brahmākṣhara-samudbhavam tasmāt sarva-gataṁ brahma nityaṁ yajñe pratiṣhṭhitam

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Word Meanings

karmaduties
brahmain the Vedas
udbhavammanifested
viddhiyou should know
brahmaThe Vedas
akṣharafrom the Imperishable (God)
samudbhavamdirectly manifested
tasmāttherefore
sarva-gatamall-pervading
brahmaThe Lord
nityameternally
yajñein sacrifice
pratiṣhṭhitamestablished
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अनुवाद

।।3.14 -- 3.15।। सम्पूर्ण प्राणी अन्नसे उत्पन्न होते हैं। अन्न  वर्षासे होती है। वर्षा यज्ञसे होती है। यज्ञ कर्मोंसे निष्पन्न होता है। कर्मोंको तू वेदसे उत्पन्न जान और वेदको अक्षरब्रह्मसे प्रकट हुआ जान। इसलिये वह सर्वव्यापी परमात्मा यज्ञ (कर्तव्य-कर्म) में नित्य प्रतिष्ठित है।  

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टीका

3.15।। व्याख्या--'अन्नाद्भवन्ति भूतानि'--प्राणोंको धारण करनेके लिये जो खाया जाता है, वह 'अन्न' (टिप्पणी प0 136.2) कहलाता है। जिस प्राणीका जो खाद्य है, जिसे ग्रहण करनेसे उसके शरीरकी उत्पत्ति, भरण और पुष्टि होती है, उसे ही यहाँ 'अन्न' नामसे कहा गया है; जैसे--मिट्टीका कीड़ा मिट्टी खाकर जीता है तो मिट्टी ही उसके लिये अन्न है।जरायुज (मनुष्य, पशु आदि), उद्भिज्ज (वृक्षादि), अण्डज (पक्षी सर्प चींटी आदि) और स्वेदज (जूँ आदि)--ये चारों प्रकारके प्राणी अन्नसे ही उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होकर अन्नसे ही जीवित रहते हैं (टिप्पणी प0 137.1)।

भगवद गीता 3.15 - अध्याय 3 श्लोक 15 हिंदी और अंग्रेजी