।।7.15।।

न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः। माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः।।7.15।।

na māṁ duṣhkṛitino mūḍhāḥ prapadyante narādhamāḥ māyayāpahṛita-jñānā āsuraṁ bhāvam āśhritāḥ

na—not; mām—unto me; duṣhkṛitinaḥ—the evil doers; mūḍhāḥ—the ignorant; prapadyante—surrender; nara-adhamāḥ—one who lazily follows one’s lower nature; māyayā—by God’s material energy; apahṛita jñānāḥ—those with deluded intellect; āsuram—demoniac; bhāvam—nature; āśhritāḥ—surrender

अनुवाद

।।7.15।।   मायाके द्वारा अपहृत ज्ञानवाले, आसुर भावका आश्रय लेनेवाले और मनुष्योंमें महान् नीच तथा पाप-कर्म करनेवाले मूढ़ मनुष्य मेरे शरण नहीं होते।९

टीका

।।7.15।। व्याख्या--'न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः'--जो दुष्कृती और मूढ़ होते हैं, वे भगवान्के शरण नहीं होते। दुष्कृती वे ही होते हैं, जो नाशवान् परिवर्तनशील प्राप्त पदार्थोंमें 'ममता' रखते हैं और अप्राप्त पदार्थोंकी 'कामना' रखते हैं। कामना पूरी होनेपर 'लोभ' और कामनाकी पूर्तिमें बाधा लगनेपर 'क्रोध' पैदा होता है। इस तरह जो 'कामना' में फँसकर व्यभिचार आदि शास्त्र-निषिद्ध विषयोंका सेवन करते

हैं, 'लोभ' में फँसकर झूठ, कपट, विश्वासघात, बेईमानी आदि पाप करते हैं और 'क्रोध' के वशीभूत होकर द्वेष, वैर आदि दुर्भावपूर्वक हिंसा आदि पाप करते, हैं वे 'दुष्कृती' हैं।जब मनुष्य भगवान्के सिवाय दूसरी सत्ता मानकर उसको महत्त्व देते हैं, तभी कामना पैदा होती है। कामनापैदा होनेसे मनुष्य मायासे मोहित हो जाते हैं और 'हम जीते रहें तथा भोग भोगते रहें'--यह बात उनको जँच जाती है। इसलिये वे भगवान्के शरण नहीं होते,

प्रत्युत विनाशी वस्तु, पदार्थ आदिके शरण हो जाते हैं।तमोगुणकी अधिकता होनेसे सार-असार, नित्य-अनित्य, सत्-असत् ,ग्राह्य-त्याज्य, कर्तव्य-अकर्तव्य आदिकी तरफ ध्यान न देनेवाले भगवद्विमुख मनुष्य 'मूढ़' हैं। दुष्कृती और मूढ़ पुरुष परमात्माकी तरफ चलनेका निश्चय ही नहीं कर सकते, फिर वे परमात्माकी शरण तो हो ही कैसे सकते हैं? 'नराधमाः'कहनेका मतलब है कि वे दुष्कृती और मूढ़ मनुष्य पशुओंसे भी नीचे हैं। पशु तो फिर

भी अपनी मर्यादामें रहते हैं, पर ये मनुष्य होकर भी अपनी मर्यादामें नहीं रहते हैं। पशु तो अपनी योनि भोगकर मनुष्ययोनिकी तरफ आ रहे हैं और ये मनुष्य होकर (जिनको कि परमात्माकी प्राप्ति करनेके लिये मनुष्यशरीर दिया), पाप, अन्याय आदि करके नरकों और पशुयोनियोंकी तरफ जा रहे हैं। ऐसे मूढ़तापूर्वक पाप करनेवाले प्राणी नरकोंके अधिकारी होते हैं। ऐसे प्राणियोंके लिये भगवान्ने (गीता 16। 19 20 में) कहा है कि द्वेष रखनेवाले, मूढ़, क्रूर और संसारमें नराधम पुरुषोंको मैं बार-बार आसुरी योनियोंमें गिराता हूँ।' वे आसुरी योनियोंको प्राप्त होकर फिर घोर नरकोंमें जाते हैं।