।।9.1।।

श्री भगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे। ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।9.1।।

śhrī bhagavān uvācha idaṁ tu te guhyatamaṁ pravakṣhyāmyanasūyave jñānaṁ vijñāna-sahitaṁ yaj jñātvā mokṣhyase ’śhubhāt

śhrī-bhagavān uvācha—the Supreme Lord said; idam—this; tu—but; te—to you; guhya-tamam—the most confidential; pravakṣhyāmi—I shall impart; anasūyave—nonenvious; jñānam—knowledge; vijñāna—realized knowledge; sahitam—with; yat—which; jñātvā—knowing; mokṣhyase—you will be released; aśhubhāt—miseries of material existence

अनुवाद

।।9.1।। श्रीभगवान् बोले -- यह अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टिरहित तेरे लिये तो मैं फिर अच्छी तरहसे कहूँगा, जिसको जानकर तू अशुभसे अर्थात् जन्म-मरणरूप संसारसे मुक्त हो जायगा।

टीका

।।9.1।। व्याख्या--इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे--भगवान्के मनमें जिस तत्त्वको, विषयको कहनेकी इच्छा है, उसकी तरफ लक्ष्य करानेके लिये ही यहाँ भगवान् सबसे पहले 'इदम्' (यह) शब्दका प्रयोग करते हैं। उस (भगवान्के मन-बुद्धिमें स्थित) तत्त्वकी महिमा कहनेके लिये ही उसको 'गुह्यतमम्' कहा है अर्थात् वह तत्त्व अत्यन्त गोपनीय है। इसीको आगेके श्लोकमें 'राजगुह्यम्' और अठारहवें अध्यायके चौंसठवें श्लोकमें 'सर्वगुह्यतमम्'

कहा है। यहाँ पहले 'गुह्यतमम्'कहकर पीछे (गीता 9। 34 में) 'मन्मना भव' ৷৷. कहा है और अठारहवें अध्यायमें पहले 'सर्वगुह्यतमम्' कहकर पीछे (गीता 18। 65 में) 'मन्मना भव' ৷৷. कहा है। तात्पर्य है कि यहाँका और वहाँका विषय एक ही है, दो नहीं।