Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।।10.11।।

teṣhām evānukampārtham aham ajñāna-jaṁ tamaḥ nāśhayāmyātma-bhāva-stho jñāna-dīpena bhāsvatā

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Word Meanings

teṣhāmfor them
evaonly
anukampā-arthamout of compassion
ahamI
ajñāna-jamborn of ignorance
tamaḥdarkness
nāśhayāmidestroy
ātma-bhāvawithin their hearts
sthaḥdwelling
jñānaof knowledge
dīpenawith the lamp
bhāsvatāluminous
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अनुवाद

।।10.11।। उन भक्तोंपर कृपा करनेके लिये ही उनके स्वरूप (होनेपन) में रहनेवाला मैं उनके अज्ञानजन्य अन्धकारको देदीप्यमान ज्ञानरूप दीपकके द्वारा सर्वथा नष्ट कर देता हूँ।

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टीका

।।10.11।। व्याख्या--'तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः'--उन भक्तोंके हृदयमें कुछ भी सांसारिक इच्छा नहीं, होती। इतना ही नहीं, उनके भीतर मुझे छोड़कर मुक्तितककी भी इच्छा नहीं होती (टिप्पणी प0 547)। अभिप्राय है कि वे न तो सांसारिक चीजें चाहते हैं और न पारमार्थिक चीजें (मुक्ति, तत्त्वबोध आदि) ही चाहते हैं। वे तो केवल प्रेमसे मेरा भजन ही करते हैं। उनके इस निष्कामभाव और प्रेमपूर्वक भजन करनेको देखकर मेरा हृदय

द्रवित हो जाता है। मैं चाहता हूँ कि मेरे द्वारा उनकी कुछ सेवा बन जाय, वे मेरेसे कुछ ले लें। परन्तु वे मेरेसे कुछ लेते नहीं तो द्रवित हृदय होनेके कारण केवल उनपर कृपा करनेके लिये कृपा-परवश होकर मैं उनके अज्ञानजन्य अन्धकारको दूर कर देता हूँ। मेरे द्रवित हृदय होनेका कारण यह है कि मेरे भक्तोंमें किसी प्रकारकी किञ्चिन्मात्र भी कमी न रहे।

भगवद गीता 10.11 - अध्याय 10 श्लोक 11 हिंदी और अंग्रेजी