।।17.24।।

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।।17.24।।

tasmād oṁ ity udāhṛitya yajña-dāna-tapaḥ-kriyāḥ pravartante vidhānoktāḥ satataṁ brahma-vādinām

tasmāt—therefore; om—sacred syllable om; iti—thus; udāhṛitya—by uttering; yajña—sacrifice; dāna—charity; tapaḥ—penance; kriyāḥ—performing; pravartante—begin; vidhāna-uktāḥ—according to the prescriptions of Vedic injunctions; satatam—always; brahma-vādinām—expounders of the Vedas

अनुवाद

।।17.24।।इसलिये वैदिक सिद्धान्तोंको माननेवाले पुरुषोंकी शास्त्रविधिसे नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएँ सदा 'ऊँ' इस परमात्माके नामका उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं।

टीका

।।17.24।। व्याख्या --   तस्मादोमित्युदाहृत्य ৷৷. ब्रह्मवादिनाम् -- वेदवादीके लिये अर्थात् वेदोंको मुख्य माननेवाला जो वैदिक सम्प्रदाय है? उसके लिये का उच्चारण करना खास बताया है। वे का उच्चारण करके ही वेदपाठ? यज्ञ? दान? तप आदि शास्त्रविहित क्रियाओंमें प्रवृत्त होते हैं क्योंकि जैसे गायें साँड़के बिना फलवती नहीं होतीं? ऐसे ही वेदकी जितनी ऋचाएँ हैं? श्रुतियाँ हैं? वे सब का उच्चारण किये बिना फलवती

नहीं होतीं अर्थात् फल नहीं देतीं। का सबसे पहले उच्चारण क्यों किया जाता है कारण कि सबसे पहले -- प्रणव प्रकट हुआ है। उस प्रणवकी तीन मात्राएँ हैं। उन मात्राओंसे त्रिपदा गायत्री प्रकट हुई है और त्रिपदा गायत्रीसे ऋक? साम और यजुः -- यह वेदत्रयी प्रकट हुई है। इस दृष्टिसे सबका मूल है और इसीके अन्तर्गत गायत्री भी है तथा सबकेसब वेद भी हैं। अतः जितनी वैदिक क्रियाएँ की जाती हैं? वे सब का उच्चारण करके ही की जाती हैं।