।।2.36।।
अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः। निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।।2.36।।
avāchya-vādānśh cha bahūn vadiṣhyanti tavāhitāḥ nindantastava sāmarthyaṁ tato duḥkhataraṁ nu kim
avāchya-vādān—using harsh words; cha—and; bahūn—many; vadiṣhyanti—will say; tava—your; ahitāḥ—enemies; nindantaḥ—defame; tava—your; sāmarthyam—might; tataḥ—than that; duḥkha-taram—more painful; nu—indeed; kim—what
अनुवाद
।।2.36।। तेरे शत्रुलोग तेरी सार्मथ्यकी निन्दा करते हुए न कहनेयोग्य बहुत-से वचन भी कहेंगे। उससे बढ़कर और दुःखकी बात क्या होगी?
टीका
2.36।। व्याख्या -- अवाच्यवादांश्च ৷৷. निन्दन्तस्तव सामर्थ्यम् अहित नाम शत्रुका है, अहित करनेवालेका है। तेरे जो दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण आदि शत्रु हैं, तेरे वैर न रखनेपर भी वे स्वयं तेरे साथ वैर रखकर तेरा अहित करनेवाले हैं। वे तेरी सामर्थ्यको जानते हैं कि यह बड़ा भारी शूरवीर है। ऐसा जानते हुए भी वे तेरी सामर्थ्यकी निन्दा करेंगे कि यह तो हिजड़ा है। देखो! यह युद्धके मौकेपर हो गया न अलग! क्या यह हमारे
सामने टिक सकता है? क्या यह हमारे साथ युद्ध कर सकता है? इस प्रकार तुझे दुःखी करनेके लिये तेरे भीतर जलन पैदा करनेके लिये न जाने कितने न कहनेलायक वचन कहेंगे। उनके वचनोंको तू कैसे सहेगा?