Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अर्जुन उवाच अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः।।3.36।।

arjuna uvācha atha kena prayukto ’yaṁ pāpaṁ charati pūruṣhaḥ anichchhann api vārṣhṇeya balād iva niyojitaḥ

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Word Meanings

arjunaḥ uvāchaArjun said
athathen
kenaby what
prayuktaḥimpelled
ayamone
pāpamsins
charaticommit
pūruṣhaḥa person
anichchhanunwillingly
apieven
vārṣhṇeyahe who belongs to the Vrishni clan, Shree Krishna
balātby force
ivaas if
niyojitaḥengaged
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अनुवाद

।।3.36।। अर्जुन बोले - हे वार्ष्णेय ! फिर यह मनुष्य न चाहता हुआ भी जबर्दस्ती लगाये हुएकी तरह किससे प्रेरित होकर पापका आचरण करता है?

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टीका

3.36।। व्याख्या--'अथ केन प्रयुक्तोऽयं ৷৷. बलादिव नियोजितः-- यदुकुलमें 'वृष्णि' नामका एक वंश था। उसी वृष्णिवंशमें अवतार लेनेसे भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम 'वार्ष्णेय' है। पूर्वश्लोकमें भगवान्ने स्वधर्म-पालनकी प्रशंसा की है। धर्म 'वर्ण' और 'कुल' का होता है; अतः अर्जुन भी कुल-(वंश-) के नामसे भगवान्को सम्बोधित करके प्रश्न करते हैं।विचारवान् पुरुष पाप नहीं करना चाहता; क्योंकि पापका परिणाम दुःख होता है और

दुःखको कोई भी प्राणी नहीं चाहता।यहाँ अनिच्छन् पदका तात्पर्य भोग है संग्रहकी इच्छाका त्याग नहीं, प्रत्युत पाप करनेकी इच्छाका त्याग है। कारण कि भोग और संग्रहकी इच्छा ही समस्त पापोंका मूल है, जिसके न रहनेपर पाप होते ही नहीं।विचारशील मनुष्य पाप करना तो नहीं चाहता, पर भीतर सांसारिक भोग और संग्रहकी इच्छा रहनेसे वह करनेयोग्य कर्तव्य कर्म नहीं कर पाता और न करनेयोग्य पाप-कर्म कर बैठता है।अनिच्छन् पदकी प्रबलताको

बतानेके लिये अर्जुन बलादिव नियोजितः पदोंको कहते हैं। तात्पर्य यह है कि पापवृत्तिके उत्पन्न होनेपर विचारशील पुरुष उस पापको जानता हुआ उससे सर्वथा दूर रहना चाहता है; फिर भी वह उस पापमें ऐसे लग जाता है, जैसे कोई उसको जबर्दस्ती पापमें लगा रहा हो। इससे ऐसा मालूम होता है कि पापमें लगानेवाला कोई बलवान् कारण है।पापोंमें प्रवृत्तिका मूल कारण है-- 'काम' अर्थात् सांसारिक सुख-भोग और संग्रहकी कामना। परन्तु इस कारणकी

ओर दृष्टि न रहनेसे मनुष्यको यह पता नहीं चलता कि पाप करानेवाला कौन है वह यह समझता है कि मैं तो पापको जानता हुआ उससे निवृत्त होना चाहता हूँ पर मेरेको कोई बलपूर्वक पापमें प्रवृत्त करता है; जैसे दुर्योधनने कहा है-- जानामि धर्मं न च मे