Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे। स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः।।4.28।।

dravya-yajñās tapo-yajñā yoga-yajñās tathāpare swādhyāya-jñāna-yajñāśh cha yatayaḥ sanśhita-vratāḥ

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Word Meanings

dravya-yajñāḥoffering one’s own wealth as sacrifice
tapaḥ-yajñāḥoffering severe austerities as sacrifice
yoga-yajñāḥperformance of eight-fold path of yogic practices as sacrifice
tathāthus
apareothers
swādhyāyacultivating knowledge by studying the scriptures
jñāna-yajñāḥthose offer cultivation of transcendental knowledge as sacrifice
chaalso
yatayaḥthese ascetics
sanśhita-vratāḥobserving strict vows
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अनुवाद

।।4.28।। दूसरे कितने ही तीक्ष्ण व्रत करनेवाले प्रयत्नशील साधक द्रव्य-सम्बन्धी यज्ञ करनेवाले हैं, और कितने ही तपोयज्ञ करनेवाले हैं, और दूसरे कितने ही योगयज्ञ करनेवाले हैं, तथा कितने ही स्वाध्यायरूप ज्ञानयज्ञ करनेवाले हैं।

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टीका

।।4.28।। व्याख्या--'यतयः संशितव्रताः'--अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरीका अभाव), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (भोग-बुद्धिसे संग्रहका अभाव)--ये पाँच 'यम' हैं (टिप्पणी प0 257), जिन्हें 'महाव्रत' के नामसे कहा गया है। शास्त्रोंमें इन महाव्रतोंकी बहुत प्रशंसा, महिमा है। इन व्रतोंका सार यही है कि मनुष्य संसारसे विमुख हो जाय। इन व्रतोंका पालन करनेवाले साधकोंके लिये यहाँ 'संशितव्रताः' पद आया है। इसके सिवाय इस श्लोकमें

आये चारों यज्ञोंमें जो-जो पालनीय व्रत अर्थात् नियम हैं, उनपर दृढ़ रहकर उनका पालन करनेवाले भी सब संशितव्रताः हैं। अपने-अपने यज्ञके अनुष्ठानमें प्रयत्नशील होनेके कारण उन्हें 'यतयः' कहा गया है।

भगवद गीता 4.28 - अध्याय 4 श्लोक 28 हिंदी और अंग्रेजी