तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः। उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये।।6.12।। समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः। संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्।।6.13।।
tatraikāgraṁ manaḥ kṛitvā yata-chittendriya-kriyaḥ upaviśhyāsane yuñjyād yogam ātma-viśhuddhaye samaṁ kāya-śhiro-grīvaṁ dhārayann achalaṁ sthiraḥ samprekṣhya nāsikāgraṁ svaṁ diśhaśh chānavalokayan
Word Meanings
अनुवाद
।।6.12।। उस आसनपर बैठकर चित्त और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको वशमें रखते हुए मनको एकाग्र करके अन्तःकरणकी शुद्धिके लिये योगका अभ्यास करे। ।।6.13।। काया, शिर और ग्रीवाको सीधे अचल धारण करके तथा दिशाओंको न देखकर केवल अपनी नासिकाके अग्रभागको देखते हुए स्थिर होकर बैठे।
टीका
।।6.12।। व्याख्या--[पूर्वश्लोकमें बिछाये जानेवाले आसनकी विधि बतानेके बाद अब भगवान् बारहवें और तेरहवें श्लोकमें बैठनेवाले आसनकी विधि बताते हैं।] ।।6.13।। व्याख्या--'समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलम्'--यद्यपि 'काय' नाम शरीरमात्रका है, तथापि यहाँ (आसनपर बैठनेके बाद) कमरसे लेकर गलेतकके भागको 'काय' नामसे कहा गया है। 'शिर' नामऊपरके भागका अर्थात् मस्तिष्कका है और 'ग्रीवा' नाम मस्तिष्क और कायाके बीचके भागका
है। ध्यानके समय ये काया, शिर और ग्रीवा सम, सीधे रहें अर्थात् रीढ़की जो हड्डी है, उसकी सब गाँठें सीधे भागमें रहें और उसी सीधे भागमें मस्तक तथा ग्रीवा रहे। तात्पर्य है कि काया, शिर और ग्रीवा --ये तीनों एक सूतमें अचल रहें। कारण कि इन तीनोंके आगे झुकनेसे नींद आती है, पीछे झुकनेसे जडता आती है और दायें-बायें झुकनेसे चञ्चलता आती है। इसलिये न आगे झुके, न पीछे झुके और न दायें-बायें ही झुके। दण्डकी तरह सीधा-सरल
बैठा रहे।सिद्धासन, पद्मासन आदि जितने भी आसन हैं, आरोग्यकी दृष्टिसे वे सभी ध्यानयोगमें सहायक हैं। परन्तु यहाँ भगवान्ने सम्पूर्ण आसनोंकी सार चीज बतायी है--काया, शिर और ग्रीवाको सीधे समतामें रखना। इसलिये भगवान्ने बैठनेके सिद्धासन, पद्मासन आदि किसी भी आसनका नाम नहीं लिया है, किसी भी आसनका आग्रह नहीं रखा है। तात्पर्य है कि चाहे किसी भी आसनसे बैठे, पर काया, शिर और ग्रीवा एक सूतमें ही रहने चाहिये; क्योंकि
इनके एक सूतमें रहनेसे मन बहुत जल्दी शान्त और स्थिर हो जाता है।आसनपर बैठे हुए कभी नींद सताने लगे, तो उठकर थोड़ी देर इधर-उधर घूम ले। फिर स्थिरतासे बैठ जाय और यह भावना बना ले कि अब मेरेको उठना नहीं है, इधर-उधर झुकना नहीं है। केवल स्थिर और सीधे बैठकर ध्यान करना है।