।।6.45।।
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः। अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।6.45।।
prayatnād yatamānas tu yogī sanśhuddha-kilbiṣhaḥ aneka-janma-sansiddhas tato yāti parāṁ gatim
prayatnāt—with great effort; yatamānaḥ—endeavoring; tu—and; yogī—a yogi; sanśhuddha—purified; kilbiṣhaḥ—from material desires; aneka—after many, many; janma—births; sansiddhaḥ—attain perfection; tataḥ—then; yāti—attains; parām—the highest; gatim—path
अनुवाद
।।6.45।। परन्तु जो योगी प्रयत्नपूर्वक यत्न करता है और जिसके पाप नष्ट हो गये हैं तथा जो अनेक जन्मोंसे सिद्ध हुआ है, वह योगी फिर परमगतिको प्राप्त हो जाता है।
टीका
।।6.45।। व्याख्या--[वैराग्यवान् योगभ्रष्ट तो तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त योगियोंके कुलमें जन्म लेने और वहाँ विशेषतासे यत्न करनेके कारण सुगमतासे परमात्माको प्राप्त हो जाता है। परन्तु श्रीमानोंके घरमें जन्म लेनेवाला योगभ्रष्ट परमात्माको कैसे प्राप्त होता है? इसका वर्णन इस श्लोकमें करते हैं।]