।।8.2।।
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः।।8.2।।
adhiyajñaḥ kathaṁ ko ’tra dehe ’smin madhusūdana prayāṇa-kāle cha kathaṁ jñeyo ’si niyatātmabhiḥ
adhiyajñaḥ—the Lord all sacrificial performances; katham—how; kaḥ—who; atra—here; dehe—in body; asmin—this; madhusūdana—Shree Krishna, the killer of the demon named Madhu; prayāṇa-kāle—at the time of death; cha—and; katham—how; jñeyaḥ—to be known; asi—are (you); niyata-ātmabhiḥ—by those of steadfast mind
अनुवाद
।।8.1 -- 8.2।। अर्जुन बोले -- हे पुरुषोत्तम ! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत किसको कहा गया है? और अधिदैव किसको कहा जाता है? यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस देहमें कैसे है? हे मधूसूदन ! नियतात्मा (वशीभूत अन्तःकरणवाले) मनुष्यके द्वारा अन्तकालमें आप कैसे जाननेमें आते हैं?
टीका
।।8.2।। व्याख्या--'पुरुषोत्तम किं तद्ब्रह्म'--हे पुरुषोत्तम वह ब्रह्म क्या है अर्थात् ब्रह्म शब्दसे क्या समझना चाहिये