।।8.26।।
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते। एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः।।8.26।।
śhukla-kṛiṣhṇe gatī hyete jagataḥ śhāśhvate mate ekayā yātyanāvṛittim anyayāvartate punaḥ
śhukla—bright; kṛiṣhṇe—dark; gatī—paths; hi—certainly; ete—these; jagataḥ—of the material world; śhāśhvate—eternal; mate—opinion; ekayā—by one; yāti—goes; anāvṛittim—to non return; anyayā—by the other; āvartate—comes back; punaḥ—again
अनुवाद
।।8.26।। क्योंकि शुक्ल और कृष्ण -- ये दोनों गतियाँ अनादिकालसे जगत्-(प्राणिमात्र-) के साथ सम्बन्ध रखनेवाली मानी गई हैं। इनमेंसे एक गतिमें जानेवालेको लौटना नहीं पड़ता और दूसरी गतिमें जानेवालेको लौटना पड़ता है।
टीका
।।8.26।। व्याख्या--'शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते'--शुक्ल और कृष्ण--इन दोनों मार्गोंका सम्बन्ध जगत्के सभी चर-अचर प्राणियोंके साथ है। तात्पर्य है कि ऊर्ध्वगतिके साथ मनुष्यका तो साक्षात् सम्बन्ध है और चर-अचर प्राणियोंका परम्परासे सम्बन्ध है। कारण कि चर-अचर प्राणी क्रमसे अथवा भगवत्कृपासे कभी-न-कभी मनुष्य-जन्ममें आते ही हैं और मनुष्यजन्ममें किये हुए कर्मोंके अनुसार ही ऊर्ध्वगति, मध्यगति और अधोगति
होती है। अब वे ऊर्ध्वगतिको प्राप्त करें अथवा न करें, पर उन सबका सम्बन्ध ऊर्ध्वगति अर्थात् शुक्ल और कृष्ण-गतिके साथ है ही।जबतक मनुष्योंके भीतर असत् (विनाशी) वस्तुओंका आदर है, कामना है, तबतक वे कितनी ही ऊँची भोग-भूमियोंमें क्यों न चले जायँ, पर असत् वस्तुका महत्त्व रहनेसे उनकी कभी भी अधोगति हो सकती है। इसी तरह परमात्माके अंश होनेसे उनकी कभी भी ऊर्ध्वगति हो सकती है। इसलिये साधकको हरदम सजग रहना चाहिये
और अपने अन्तःकरणमें विनाशी वस्तुओंको महत्त्व नहीं देना चाहिये। तात्पर्य यह हुआ कि परमात्मप्राप्तिके लिये किसी भी लोकमें, योनिमें कोई बाधा नहीं है। इसका कारण यह है कि परमात्माके साथ किसी भी प्राणीका कभी सम्बन्ध-विच्छेद होता ही नहीं। अतः न जाने कब और किस योनिमें वह परमात्माकी तरफ चल दे-- इस दृष्टिसे साधकको किसी भी प्राणीको घृणाकी दृष्टिसे देखनेका अधिकार नहीं है।चौथे अध्यायके पहले श्लोकमें भगवान्ने 'योग'
को अव्यय कहा है। जैसे योग अव्यय है, ऐसे ही ये शुक्ल और कृष्ण -- दोनों गतियाँ भी अव्यय, शाश्वत हैं अर्थात् ये दोनों गतियाँ निरन्तर रहनेवाली हैं, अनादिकालसे हैं और जगत्के लिये अनन्तकालतक चलती रहेंगी।