।।9.29।।
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः। ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।9.29।।
samo ’haṁ sarva-bhūteṣhu na me dveṣhyo ’sti na priyaḥ ye bhajanti tu māṁ bhaktyā mayi te teṣhu chāpyaham
samaḥ—equally disposed; aham—I; sarva-bhūteṣhu—to all living beings; na—no one; me—to me; dveṣhyaḥ—inimical; asti—is; na—not; priyaḥ—dear; ye—who; bhajanti—worship with love; tu—but; mām—me; bhaktyā—with devotion; mayi—reside in me; te—such persons; teṣhu—in them; cha—and; api—also; aham—I
अनुवाद
।।9.29।। मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें समान हूँ। उन प्राणियोंमें न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है। परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, वे मेरेमें हैं और मैं उनमें हूँ।
टीका
।।9.29।। व्याख्या--'समोऽहं सर्वभूतेषु'-- मैं स्थावरजंगम आदि सम्पूर्ण प्राणियोंमें व्यापकरूपसे और कृपादृष्टिसे सम हूँ। तात्पर्य है कि मैं सबमें समानरूपसे व्यापक, परिपूर्ण हूँ --'मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना' (गीता 9। 4), और मेरी सबपर समानरूपसे कृपादृष्टि है--'सुहृदं सर्वभूतानाम्' (गीता 5। 29)।