Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।9.7।। प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः। भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।9.8।।

sarva-bhūtāni kaunteya prakṛitiṁ yānti māmikām kalpa-kṣhaye punas tāni kalpādau visṛijāmyaham prakṛitiṁ svām avaṣhṭabhya visṛijāmi punaḥ punaḥ bhūta-grāmam imaṁ kṛitsnam avaśhaṁ prakṛiter vaśhāt

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Word Meanings

sarva-bhūtāniall living beings
kaunteyaArjun, the son of Kunti
prakṛitimprimordial material energy
yāntimerge
māmikāmmy
kalpa-kṣhayeat the end of a kalpa
punaḥagain
tānithem
kalpa-ādauat the beginning of a kalpa
visṛijāmimanifest
ahamI prakṛitim—the material energy
svāmmy own
avaṣhṭabhyapresiding over
visṛijāmigenerate
punaḥ punaḥagain and again
bhūta-grāmammyriad forms
imamthese
kṛitsnamall
avaśhambeyond their control
prakṛiteḥnature
vaśhātforce
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अनुवाद

।।9.7।। हे कुन्तीनन्दन ! कल्पोंका क्षय होनेपर सम्पूर्ण प्राणी मेरी प्रकृतिको प्राप्त होते हैं और कल्पोंके आदिमें मैं फिर उनकी रचना करता हूँ। ।।9.8।। प्रकृतिके वशमें होनेसे परतन्त्र हुए इस सम्पूर्ण प्राणिसमुदायको मैं (कल्पोंके आदिमें) अपनी प्रकृतिको वशमें करके बार-बार रचता हूँ।

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टीका

।।9.7।। व्याख्या--'सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकां कल्पक्षये' -- सम्पूर्ण प्राणी मेरे ही अंश हैं और सदा मेरेमें ही स्थित रहनेवाले हैं। परन्तु वे प्रकृति और प्रकृतिके कार्य शरीर आदिके साथ तादात्म्य (मैं-मेरेपनका सम्बन्ध) करके जो कुछ भी कर्म करते हैं, उन कर्मों तथा उनके फलोंके साथ उनका सम्बन्ध जुड़ता जाता है, जिससे वे बार-बार जन्मते-मरते रहते हैं। जब महाप्रलयका समय आता है,(जिसमें ब्रह्माजी

सौ वर्षकी आयु पूरी होनेपर लीन हो जाते हैं), उस समय प्रकृतिके परवश हुए वे सम्पूर्ण प्राणी प्रकृतिजन्य सम्बन्धको लेकर अर्थात् अपने-अपने कर्मोंको लेकर मेरी प्रकृतिमें लीन हो जाते हैं।महासर्गके समय प्राणियोंका जो स्वभाव होता है, उसी स्वभावको लेकर वे महाप्रलयमें लीन होते हैं। 'पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्'-- महाप्रलयके समय अपने-अपने कर्मोंको लेकर प्रकृतिमें लीन हुए प्राणियोंके कर्म जब परिपक्व होकर

फल देनेके लिये उन्मुख हो जाते हैं, तब प्रभुके मनमें 'बहु स्यां प्रजायेय' ऐसा संकल्प हो जाता है। यही महासर्गका आरम्भ है। इसीको आठवें अध्यायके तीसरे श्लोकमें कहा है -- 'भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः' अर्थात् सम्पूर्ण प्राणियोंका जो होनापन है, उसको प्रकट करनेके लिये भगवान्का जो संकल्प है, यही विसर्ग (त्याग) है और यही आदिकर्म है। चौदहवें अध्यायमें इसीको 'गर्भं' 'दधाम्यहम्' (14। 3) और 'अहं बीजप्रदः

पिता' (14। 4) कहा है।तात्पर्य यह हुआ कि कल्पोंके आदिमें अर्थात् महासर्गके आदिमें ब्रह्माजीके प्रकट होनेपर मैं पुनः प्रकृतिमें लीन हुए, प्रकृतिके परवश हुए, उन जीवोंका उनके कर्मोंके अनुसार उन-उन योनियों-(शरीरों-) के साथ विशेष सम्बन्ध करा देता हूँ--यह मेरा उनको रचना है। इसीको भगवान्ने चौथे अध्यायके तेरहवें श्लोकमें कहा है--'चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः'अर्थात् मेरे द्वारा गुणों और कर्मोंके

विभागपूर्वक चारों वर्णोंकी रचना की गयी है।ब्रह्माजीके एक दिनका नाम 'कल्प' है, जो मानवीय एक हजार चतुर्युगीका होता है। इतने ही समयकी ब्रह्माजीकी एक रात होती है। इस हिसाबसे ब्रह्माजीकी आयु सौ वर्षोंकी होती है। ब्रह्माजीकी आयु समाप्त होनेपर जब ब्रह्माजी लीन हो जाते हैं, उस महाप्रलयको यहाँ 'कल्पक्षये' पदसे कहा गया है। जब ब्रह्माजी पुनः प्रकट होते हैं, उस महासर्गको यहाँ 'कल्पादौ'पदसे कहा गया है। ।।9.8।। व्याख्या--'भूतग्राममिमं

कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्'-- यहाँ प्रकृति शब्द व्यष्टि प्रकृतिका वाचक है। महाप्रलयके समय सभी प्राणी अपनी व्यष्टि प्रकृति-(कारणशरीर) में लीन हो जाते हैं, व्यष्टि प्रकृति समष्टि प्रकृतिमें लीन होती है और समष्टि प्रकृति परमात्मामें लीन हो जाती है। परन्तु जब महासर्गका समय आता है, तब जीवोंके कर्मफल देनेके लिये उन्मुख हो जाते हैं। उस उन्मुखताके कारण भगवान्में 'बहु स्यां प्रजायेय' (छान्दोग्य0 6। 2। 3) --

यह संकल्प होता है, जिससे समष्टि प्रकृतिमें क्षोभ (हलचल) पैदा हो जाता है। जैसे, दहीको बिलोया जाय तो उसमें मक्खन और छाछ --ये दो चीजें पैदा हो जाती हैं। मक्खन तो ऊपर आ जाता है और छाछ नीचे रह जाती है। यहाँ मक्खन सात्त्विक है, छाछ तामस है और बिलोनारूप क्रिया राजस है। ऐसे ही भगवान्के संकल्पसे प्रकृतिमें क्षोभ हुआ तो प्रकृतिसे सात्त्विक, राजस और तामस --ये तीनों गुण पैदा हो गये। उन तीनों गुणोंसे स्वर्ग, मृत्यु

और पाताल --ये तीनों लोक पैदा हुए। उन तीनों लोकोंमें भी अपने-अपने गुण, कर्म और स्वभावसे सात्त्विक, राजस और तामस जीव पैदा हुए अर्थात् कोई सत्त्व-प्रधान हैं, कोई रजःप्रधान हैं और कोई तमःप्रधान हैं।इसी महासर्गका वर्णन चौदहवें अध्यायके तीसरे-चौथे श्लोकोंमें भी किया गया है। वहाँ परमात्माकी प्रकृतिको 'महद्ब्रह्म' कहा गया है और परमात्माके अंश जीवोंका अपने-अपने गुण, कर्म और स्वभावके अनुसार प्रकृतिके साथ विशेष सम्बन्ध करा देनेको बीज-स्थापन करना कहा गया है।

भगवद गीता 9.7-8 - अध्याय 9 श्लोक 7-8 हिंदी और अंग्रेजी