।।1.26।।

तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृ़नथ पितामहान्। आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ़न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा।।1.26।।

tatrāpaśhyat sthitān pārthaḥ pitṝīn atha pitāmahān āchāryān mātulān bhrātṝīn putrān pautrān sakhīṁs tathā śhvaśhurān suhṛidaśh chaiva senayor ubhayor api

tatra—there; apaśhyat—saw; sthitān—stationed; pārthaḥ—Arjun; pitṝīn—fathers; atha—thereafter; pitāmahān—grandfathers; āchāryān—teachers; mātulān—maternal uncles; bhrātṝīn—brothers; putrān—sons; pautrān—grandsons; sakhīn—friends; tathā—also; śhvaśhurān—fathers-in-law; suhṛidaḥ—well-wishers; cha—and; eva—indeed; senayoḥ—armies; ubhayoḥ—in both armies; api—also

अनुवाद

।।1.26।। उसके बाद पृथानन्दन अर्जुनने उन दोनों ही सेनाओंमें स्थित पिताओंको, पितामहोंको, आचार्योंको, मामाओंको, भाइयोंको, पुत्रोंको, पौत्रोंको तथा मित्रोंको, ससुरोंको और सुहृदोंको भी देखा।  

टीका

1.26।। व्याख्या--'तत्रापश्यत् ৷৷. सेनयोरूभयोरपि'-- जब भगवान्ने अर्जुनसे कहा कि इस रणभूमिमें इकट्ठे हुए कुरुवंशियोंको देख, तब अर्जुनकी दृष्टि दोनों सेनाओंमें स्थित अपने कुटुम्बियोंपर गयी। उन्होंने देखा कि उन सेनाओंमें युद्धके लिये अपने-अपने स्थानपर भूरिश्रवा आदि पिताके भाई खड़े हैं, जो कि मेरे लिये पिताके समान हैं। भीष्म, सोमदत्त आदि पितामह खड़े हैं। द्रोण, कृप आदि आचार्य (विद्या पढ़ानेवाले और कुलगुरु)

खड़े हैं। पुरुजित, कुन्तिभोज, शल्य, शकुनि आदि मामा खड़े हैं। भीम, दुर्योधन आदि भाई खड़े हैं। अभिमन्यु, घटोत्कच, लक्ष्मण (दुर्योधनका पुत्र) आदि मेरे और मेरे भाइयोंके पुत्र खड़े हैं। लक्ष्मण आदिके पुत्र खड़े हैं जो कि मेरे पौत्र हैं। दुर्योंधनके अश्वत्थामा आदि मित्र खड़े हैं और ऐसे ही अपने पक्षके मित्र भी खड़े हैं। द्रुपद, शैब्य आदि ससुर खड़े हैं। बिना किसी हेतुके अपने-अपने पक्षका हित चाहनेवाले सात्यकि, कृतवर्मा आदि सुहृद् भी खड़े हैं।