Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्। पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्।।11.44।।

tasmāt praṇamya praṇidhāya kāyaṁ prasādaye tvām aham īśham īḍyam piteva putrasya sakheva sakhyuḥ priyaḥ priyāyārhasi deva soḍhum

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Word Meanings

tasmāttherefore
praṇamyabowing down
praṇidhāyaprostrating
kāyamthe body
prasādayeto implore grace
tvāmyour
ahamI
īśhamthe Supreme Lord
īḍyamadorable
pitāfather
ivaas
putrasyawith a son
sakhāfriend
ivaas
sakhyuḥwith a friend
priyaḥa lover
priyāyāḥwith the beloved
arhasiyou should
devaLord
soḍhumforgive
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अनुवाद

।।11.44।। इसलिये शरीरसे लम्बा पड़कर स्तुति करनेयोग्य आप ईश्वरको मैं प्रणाम करके प्रसन्न करना चाहता हूँ। जैसे पिता पुत्रके, मित्र मित्रके और पति पत्नीके अपमानको सह लेता है, ऐसे ही हे देव ! आप मेरे द्वारा किया गया अपमान सहनेमें समर्थ हैं।

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टीका

।।11.44।। व्याख्या--'तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीषमीड्यम्'--आप अनन्त ब्रह्माण्डोंके ईश्वर हैं। इसलिये सबके द्वारा स्तुति करनेयोग्य आप ही हैं। आपके गुण, प्रभाव, महत्त्व आदि अनन्त हैं; अतः ऋषि, महर्षि, देवता, महापुरुष आपकी नित्य-निरन्तर स्तुति करते रहें, तो भी पार नहीं पा सकते। ऐसे स्तुति करनेयोग्य आपकी मैं क्या स्तुति कर सकता हूँ? मेरेमें आपकी स्तुति करनेका बल नहीं है, सामर्थ्य नहीं

है। इसलिये मैं तो केवल आपके चरणोंमें लम्बा पड़कर दण्डवत् प्रणाम ही कर सकता हूँ और इसीसे आपको प्रसन्न करना चाहता हूँ। 'पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्'-- किसीका अपमान होता है तो उसमें मुख्य तीन कारण होते हैं -- (1) प्रमाद-(असावधानी-) से, (2) हँसी, दिल्लगी, विनोदमें खयाल न रहनेसे और (3) अपनेपनकी घनिष्ठता होनेपर अपने साथ रहनेवालेका महत्त्व न जाननेसे। जैसे, गोदीमें बैठा हुआ

छोटा बच्चा अज्ञानवश पिताकी दाढ़ी-मूँछ खींचता है, मुँहपर थप्पड़ लगाता है, कभी कहीं लात मार देता है तो बच्चेकी ऐसी चेष्टा देखकर पिता राजी ही होते हैं. प्रसन्न ही होते हैं। वे अपनेमें यह भाव लाते ही नहीं कि पुत्र मेरा अपमान कर रहा है। मित्र मित्रके साथ चलते-फिरते, उठते-बैठते आदि समय चाहे जैसा व्यवहार करता है, चाहे जैसा बोल देता है, जैसे -- तुम ब़ड़े सत्य बोलते हो जी तुम तो बड़े सत्यप्रतिज्ञ हो अब तो

तुम बड़े आदमी हो गये हो तुम तो खूब अभिमान करने लग गये हो आज मानो तुम राजा ही बन गये हो आदि, पर उसका मित्र उसकी इन बातोंका खयाल नहीं करता। वह तो यही समझता है कि हम बराबरीके मित्र हैं, ऐसी हँसी-दिल्लगी तो होती ही रहती है। पत्नीके द्वारा आपसके प्रेमके कारण उठने-बैठने, बातचीत करने आदिमें पतिकी जो कुछ अवहेलना होती है, उसे पति सह लेता है। जैसे, पति नीचे बैठा है तो,वह ऊँचे आसनपर बैठ जाती है, कभी किसी बातको

लेकर अवहेलना भी कर देती है, पर पति उसे स्वाभाविक ही सह लेता है। अर्जुन कहते हैं कि जैसे पिता पुत्रके, मित्र मित्रके और पति पत्नीके अपमानको सह लेता है अर्थात् क्षमा कर देता है, ऐसे ही हे भगवन् आप मेरे अपमानको सहनेमें समर्थ हैं अर्थात् इसके लिये मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ।

भगवद गीता 11.44 - अध्याय 11 श्लोक 44 हिंदी और अंग्रेजी