।।11.46।।

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव। तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।।11.46।।

kirīṭinaṁ gadinaṁ chakra-hastam ichchhāmi tvāṁ draṣhṭum ahaṁ tathaiva tenaiva rūpeṇa chatur-bhujena sahasra-bāho bhava viśhva-mūrte

kirīṭinam—wearing the crown; gadinam—carrying the mace; chakra-hastam—disc in hand; ichchhāmi—I wish; tvām—you; draṣhṭum—to see; aham—I; tathā eva—similarly; tena eva—in that; rūpeṇa—form; chatuḥ-bhujena—four-armed; sahasra-bāho—thousand-armed one; bhava—be; viśhwa-mūrte—universal form

अनुवाद

।।11.46।।  मैं आपको वैसे ही किरीटधारी, गदाधारी और हाथमें चक्र लिये हुए देखना चाहता हूँ। इसलिये हे सहस्रबाहो ! हे विश्वमूर्ते ! आप उसी चतुर्भुजरूपसे हो जाइये।

टीका

।।11.46।। व्याख्या--'किरीटनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव--जिसमें आपने सिरपर दिव्य मुकुट तथा हाथोंमें गदा और चक्र धारण कर रखे हैं, उसी रूपको मैं देखना चाहता हूँ। 'तथैव' कहनेका तात्पर्य है कि मेरे द्वारा 'द्रष्टुमिच्छामि ते रूपम्' (11। 3) ऐसी इच्छा प्रकट करनेसे आपने विराट्रूप दिखाया। अब मैं अपनी इच्छा बाकी क्यों रखूँ? अतः मैंने आपके विराट्रूपमें जैसा सौम्य चतुर्भुजरूप देखा है, वैसा-का-वैसा ही रूप मैं अब देखना चाहता हूँ -- 'इच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।