Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।

chātur-varṇyaṁ mayā sṛiṣhṭaṁ guṇa-karma-vibhāgaśhaḥ tasya kartāram api māṁ viddhyakartāram avyayam

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Word Meanings

chātuḥ-varṇyamthe four categories of occupations
mayāby me
sṛiṣhṭamwere created
guṇaof quality
karmaand activities
vibhāgaśhaḥaccording to divisions
tasyaof that
kartāramthe creator
apialthough
māmme
viddhiknow
akartāramnon-doer
avyayamunchangeable
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अनुवाद

।।4.13 -- 4.14।। मेरे द्वारा गुणों और कर्मोंके विभागपूर्वक चारों वर्णोंकी रचना की गयी है। उस-(सृष्टि-रचना आदि-) का कर्ता होनेपर भी मुझ अव्यय रमेश्वरको तू अकर्ता जान। कारण कि कर्मोंके फलमें मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते। इस प्रकार जो मुझे तत्त्वसे जान लेता है, वह भी कर्मोंसे नहीं बँधता।

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टीका

4.13।। व्याख्या--'चातुर्वर्ण्यं' (टिप्पणी प0 235.1) 'मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः'--पूर्वजन्मोंमें किये गये कर्मोंके अनुसार सत्त्व, रज और तम--इन तीनों गुणोंमें न्यूनाधिकता रहती है। सृष्टि-रचनाके समय उन गुणों और कर्मोंके अनुसार भगवान् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र--इन चारों वर्णोंकी रचना करते हैं (टिप्पणी प0 235.2)। मनुष्यके सिवाय देव, पितर, तिर्यक् आदि दूसरी योनियोंकी रचना भी भगवान् गुणों और कर्मोंके अनुसार ही करते हैं। इसमें भगवान्की किञ्चिन्मात्र भी विषमता नहीं है।

भगवद गीता 4.13 - अध्याय 4 श्लोक 13 हिंदी और अंग्रेजी