श्रीकृष्ण कर्मयोग और कर्म संन्यास के तुलनात्मक मूल्यांकन के अनुक्रम को पांचवें अध्याय से इस छठे अध्याय में भी जारी रखते हैं और पहले वाले मार्ग के अनुसरण की संस्तुति करते हैं। जब हम समर्पण के साथ कार्य करते हैं तब इससे हमारा मन शुद्ध हो जाता है और हमारी आध्यात्मिक अनुभूति गहन हो जाती है। फिर जब मन शांत हो जाता है तब साधना उत्थान का मुख्य साधन बन जाती है। ध्यान द्वारा योगी मन को वश में करने का प्रयास करते हैं क्योंकि अप्रशिक्षित मन हमारा बुरा शत्रु है और प्रशिक्षित मन हमारा प्रिय मित्र है। श्रीकृष्ण अर्जुन को सावधान करते हैं कि कठोर तप में लीन रहने से कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सकता और इसलिए मनुष्य को अपने खान-पान, कार्य-कलापों, अमोद-प्रमोद और निद्रा को संतुलित रखना चाहिए। आगे फिर वे मन को भगवान में एकीकृत करने के लिए साधना का वर्णन करते हैं। जिस प्रकार से वायु रहित स्थान पर रखे दीपक की ज्वाला में झिलमिलाहट नहीं होती। ठीक उसी प्रकार साधक को मन साधना में स्थिर रखना चाहिए। वास्तव में मन को वश में करना कठिन है लेकिन अभ्यास और विरक्ति द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए मन जहाँ कहीं भी भटकने लगे तब हमें वहाँ से इसे वापस लाकर निरन्तर भगवान में केंद्रित करना चाहिए। जब मन शुद्ध हो जाता है तब यह अलौकिकता में स्थिर हो जाता है। आनन्द की इस अवस्था को समाधि कहते हैं जिसमें मनुष्य असीम दिव्य आनन्द प्राप्त करता है। इसके पश्चात अर्जुन उस साधक के भाग्य के संबंध में प्रश्न करता है जो इस मार्ग का अनुसरण करना आरम्भ तो करता है लेकिन अस्थिर मन के कारण लक्ष्य तक पहुँचने में असमर्थ रहता है। श्रीकृष्ण उसे पुनः आश्वस्त करते हैं कि जो भगवद्प्राप्ति के लिए प्रयास करता है, बुराई कभी उस पर हावी नहीं हो सकती। भगवान सदैव पूर्व जन्मों में संचित हमारे आध्यात्मिक गुणों का लेखा-जोखा रखते हैं और अगले जन्मों में उस ज्ञान को पुनः जागृत करते हैं ताकि हमने अपनी यात्रा को जहाँ से छोड़ा था उसे वहीं से पुनः आगे जारी रख सकें। अनेक पूर्व जन्मों से अर्जित पुण्यों और गुणों के साथ योगी अपने वर्तमान जीवन में भगवान तक पहुँचने में समर्थ हो सकता है। इस अध्याय का समापन इस उद्घोषणा के साथ होता है कि योगी भगवान के साथ एकीकृत होने का प्रयास करता है इसलिए वह तपस्वी, ज्ञानी और कर्मकाण्डों का पालन करने वाले कर्मी से श्रेष्ठ होता है। सभी योगियों में से जो भक्ति में तल्लीन रहता है वह सर्वश्रेष्ठ होता है।